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शाहजहाँ ( 1627 -1657 ईस्वी )

Thursday, 9 June 2016

शाहजहाँ ( 1627 -1657 ईस्वी )

जहाँगीर के बाद सिंघासन पर शाहजहाँ बैठा
जोधपुर के शासक मोटा राजा उदय सिंह की पुत्री जगत गोसाई के गर्भ से 5 जनवरी ,1592 ईस्वी को खुर्रम (शाहजहाँ )का जन्म लाहोर में हुआ था। 1612 ईस्वी खुर्रम का विवाह आसफ खाँ की पुत्री अर्जुमंद बानो बेगम से हुआ ,जिसे शाहजहाँ ने मलिका -ए -जमानी की उपाधि प्रदान की थी। 7 जून ,1631 ईस्वी में प्रसव पीड़ा के कारण उसकी मृत्यु को गई।
४ फरवरी,1628 ईस्वी को शाहजहाँ आगरा में अबुल मुज्जफर शहाबुद्दीन मुह्हमद साहिब किरन -ए -सानी की उपाधि प्राप्त कर सिंघासन पर बैठा।
शाहजहाँ ने आसफ खाँ को वजीर पद एवं महावत खाँ को खानखाना की उपाधि प्रदान की।
इसने नूरजहाँ को दो लाख रु. प्रतिवर्ष की पेंशन देकर लाहौर जाने दिया ,जहाँ 1645 ईस्वी में उसकी मृत्यु हो गई।
अपनी बेगम मुमताज महल की याद में शाहजहाँ ने ताजमहल का निर्माण आगरा में उसकी कब्र के ऊपर करवाया। उस्ताद ईशा ताजमहल की रूप रेखा तैयार की थी।
ताजमहल का निर्माण करनेवाला मुख्य स्थापत्य कलाकार उस्ताद अहमद लाहौरी  था।
मयूर सिंघासन का निर्माण शाहजहाँ ने करवाया था।  इसका मुख्य कलाकार बे बदल खाँ थे।जिससे पौराणिक यूनानी देवता आर्फियस को वीणा बजट हुए चित्रित किया गया है।
शाहजहाँ के शासनकाल को स्थापत्यकला का स्वर्ण युग कहा जाता है। शाहजहाँ द्वारा बनवाई गई प्रमुख इमारतें है :-दिल्ली का लाल किला,दीवाने आम ,दीवाने खास ,दिल्ली जमा मस्जिद ,आगरा मोती मस्जिद ,ताजमहल आदि।

note : हुमायुँ के मकबरा को ताजमहल का पूर्ववर्ती मन जाता है।

शाहजहाँ ने 1632 ईस्वी अहमदनगर को मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया। 
शाहजहाँ ने 1638 ईस्वी में अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली लेन के लिए यमुना नदी के दाहिने तट पर शाहजहाँनाबाद की नींव डाली। 
शाहजहाँ आगरे के जमा मस्जिद का निर्माण शाहजहाँ की पुत्री जहाँ आरा ने करवाई। 
शाहजहाँ के दरबार के प्रमुख चित्रकार मुह्हमद फ़क़ीर एवं मीर हासिम थे। 
शाहजहाँ के दरबार में वंशीधर मिश्र एवं हरिनारायण मिश्र नाम के दो संस्कृत के कवी थे। 
शाहजहाँ ने संगीतज्ञ लाल खाँ को 'गुण सिकंदर'की उपाधि दी थी। 
शाहजहाँ के पुत्रों में दारा शिकोह सर्वाधिक विध्वान था। इसने भगवदगीता ,योगवशिस्ट,उपनिषद एवं रामायण का अनुवाद फ़ारसी में किया था। दारा शिकोह कदीरी सिलसिले के मुल्ला शाह बदखसि का शिष्य था। 
शाहजहाँ ने दिल्ली में एक कॉलेज का निर्माण एवं दारुल बका  नामक कॉलेज की मरम्मत कराई। 
सितंबर,1657 ईस्वी में शाहजहाँ के गम्भीर रूप से बीमार पड़ने और म्रत्यु का अफवाह फैलने के कारण उसके पुत्रों के बीच उत्तराधिकार का यद्ध प्रारम्भ हुआ। उस समय शूजा बंगाल,मुराद गुजरात एवं औरंगजेब दककन में था। 
15 अप्रैल,1658 ईस्वी में दारा एवं औरंगजेब के बीच धरमट का यद्ध हुआ। इस युद्ध में दारा की पराजय हुई। 
सामूगढ़ का उद्ध 29 मई,1658 ईस्वी को दारा एवं औरंगजेब के बीच हुआ। इस युद्ध में भी दारा  की हार हुई। उत्तराधिकार का अंतिम युद्ध देवराई की घाटी में मार्च ,1659 ईस्वी को हुआ। इस युद्ध में दारा के पराजित होने पर उसे इस्लाम धर्म की अवहेलना करने के अपराध में 30 अगस्त,1659 ईस्वी को हत्या कर दी गई। 
शाह बुलंद इक़बाल के रूप में डरा शिकोह जाना जाता था। 
8जून ,1658 ईस्वी को औरंगजेब ने शाहजहाँ को बंदी बना लिया। आगरा के किले में अपने कैदी जीवन के आठवें वर्ष को 74 वर्ष की अवस्था में शाहजहाँ की मृत्यु।  

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