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राणा कुंभा (1433-1468)

Wednesday, 8 June 2016

राणा कुंभा (1433-1468) 
मोकल के पुत्र राणा कुंभा (1433-1468) मेवाड़ में  राजनीतिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक उन्नति के लिए जाना जाता है। 
कुंभा को अभिनवभरताचार्य, हिंदू सुरताण,चापगुरु, दान गुरु आदि विरुदों  से संबोधित किया जाता था। 
राणा कुंभा ने 1437  में सारंगपुर के युद्ध में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को पराजित किया था। 
इस विजय के उपलक्ष्य में कुंभा ने अपने आराध्य देव विष्णु के निमित्त चित्तौड़गढ़ में कीर्ति स्तंभ (विजय स्तंभ) का निर्माण करवाया। 
कुंभा ने मेवाड़ की सुरक्षा के उद्देश्य से 32 किलो का निर्माण करवाया था, जिनमें बसंती दुर्ग, मचान दुर्ग,अचलगढ, कुंभलगढ़ दुर्ग प्रमुख है। 
कुंभलगढ़ दुर्ग का सबसे ऊंचा भाग कटारगढ़ कहलाता है। 
कुंभाकालीन स्थापत्य में मंदिरों का बड़ा महत्व है। 
ऐसे मंदिरों में कुंभ स्वामी तथा श्रंगारचौरी का मंदिर (चित्तौड़),मीरां  मंदिर (एकलिंग जी), रणकपुर का मंदिर अनूठे हैं। 
कुंभा वीर, युद्ध कुशल, कला प्रेमी के साथ साथ विद्वान एवं विद्यानुरागी भी था। 
एकलिंग महात्मय से ज्ञात होता है कि कुंभा वेद, स्मृति मिमासा, उपनिषद्, व्याकरण, साहित्य ,राजनीति में बड़ा निपुण था। 
संगीत राज, संगीत मीमांसा सुड प्रबंध कुंभा द्वारा रचित संगीत ग्रंथ थे। 
कुम्भा ने चण्डीशतक की व्याख्या, गीत गोविंद की रसिकप्रिया टीका और संगीत रत्नाकर की टीका लिखी थी। कुंभा का दरबार विद्वानों की शरणस्थली था। 
उस के दरबार में मंडन कविअत्री और महेश, कान्ह  व्यास इत्यादि थी। 
अत्रि और महेश ने कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति की रचना की तथा कान्ह व्यास ने  एकलिंग महात्य  नामक ग्रंथ की रचना की। 
इस प्रकार कुंभा के काल में मेवाड़ सर्वतोंमुखी उन्नति पर पहुंच गया था। 

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