राणा कुंभा (1433-1468)
⇒मोकल के पुत्र राणा कुंभा (1433-1468) मेवाड़ में राजनीतिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक उन्नति के लिए जाना जाता है।
⇒कुंभा को अभिनवभरताचार्य, हिंदू सुरताण,चापगुरु, दान गुरु आदि विरुदों से संबोधित किया जाता था।
⇒राणा कुंभा ने 1437 में सारंगपुर के युद्ध में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को पराजित किया था।
⇒इस विजय के उपलक्ष्य में कुंभा ने अपने आराध्य देव विष्णु के निमित्त चित्तौड़गढ़ में कीर्ति स्तंभ (विजय स्तंभ) का निर्माण करवाया।
⇒कुंभा ने मेवाड़ की सुरक्षा के उद्देश्य से 32 किलो का निर्माण करवाया था, जिनमें बसंती दुर्ग, मचान दुर्ग,अचलगढ, कुंभलगढ़ दुर्ग प्रमुख है।
⇒कुंभलगढ़ दुर्ग का सबसे ऊंचा भाग कटारगढ़ कहलाता है।
⇒कुंभाकालीन स्थापत्य में मंदिरों का बड़ा महत्व है।
⇒ऐसे मंदिरों में कुंभ स्वामी तथा श्रंगारचौरी का मंदिर (चित्तौड़),मीरां मंदिर (एकलिंग जी), रणकपुर का मंदिर अनूठे हैं।
⇒कुंभा वीर, युद्ध कुशल, कला प्रेमी के साथ साथ विद्वान एवं विद्यानुरागी भी था।
⇒एकलिंग महात्मय से ज्ञात होता है कि कुंभा वेद, स्मृति मिमासा, उपनिषद्, व्याकरण, साहित्य ,राजनीति में बड़ा निपुण था।
⇒संगीत राज, संगीत मीमांसा सुड प्रबंध कुंभा द्वारा रचित संगीत ग्रंथ थे।
⇒कुम्भा ने चण्डीशतक की व्याख्या, गीत गोविंद की रसिकप्रिया टीका और संगीत रत्नाकर की टीका लिखी थी। ⇒कुंभा का दरबार विद्वानों की शरणस्थली था।
⇒उस के दरबार में मंडन कविअत्री और महेश, कान्ह व्यास इत्यादि थी।
⇒अत्रि और महेश ने कीर्ति स्तंभ प्रशस्ति की रचना की तथा कान्ह व्यास ने एकलिंग महात्य नामक ग्रंथ की रचना की।
⇒इस प्रकार कुंभा के काल में मेवाड़ सर्वतोंमुखी उन्नति पर पहुंच गया था।
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