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प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत

Monday, 23 May 2016
प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत


  1. साहित्यिक  साक्ष्य 
  2. विदेशियों के वृतांत 
  3. पुरातात्विक साक्ष्य 

साहित्यिक  साक्ष्य 

धार्मिक साहित्यिकसाक्ष्यों  के अंतर्गत वेद, वेदांत, उपनिषद, ब्राह्मण ,अन्य पुराण रामायण ,महाभारत, स्मृति ग्रंथ तथा बोद्ध तथा जैन साहित्य आदि को शामिल किया जाता है।   
  • वेदों की संख्या चार है ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद तथा वेदांत के अंतर्गत शिक्षा, कल्प,  ज्योतिष, व्याकरण, ननिरुक्त  तथा छन्द  आते है।  इसके अलावा सभी वेदों के ब्राह्मण एवं आरण्यक है , जिनसे  हमें अनेक ऐतिहासिक एवं सामाजिक तथ्य  प्राप्त होते हैं। 
  • बौद्ध ग्रंथों में त्रिपिटक, निकाय तथा जातक आदि प्रमुख है। 
  • जातक में बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाओं का संकलन किया गया है। सुत्तपिटक में बुद्ध के उपदेश, विनयपिटक में भिक्षु - भिक्षुणियों से संबंधित नियम तथा अभिधम्मपिटक में बौद्ध  मतों की दार्शनिक व्याख्या की गई है। 
  • बौद्ध ग्रन्थ  दीपवंश, महावंश से मौर्यकालीन  पर्याप्त जानकारी मिलती है। नागसेन रचित मिलिंदपन्हो से हिंदी यवन शासक मिनांडर के विषय में सूचना मिलती है। 
  • बोद्ध तथा जैन ग्रंथों से  तत्कालीन सामाजिक, सांस्कृतिक  तथा आर्थिक परिस्थितियों का ज्ञान होता है। 
  • जैन ग्रंथों में परिशिस्तपर्वन्, बद्रबहुचरित, आचारांग सूत्र,भगवती सूत्र, कल्पसूत्र आदि से  अनेक ऐतिहासिक सामग्री मिलती है। जैन ग्रंथ भगवती सूत् में महावीर स्वामी के जीवन तथा समकालीन घटनाओं की जानकारी मिलती है। 
  • अष्टाध्याई संस्कृत व्याकरण का पहला ग्रंथ है जिसकी रचना पाणिनि ने  की थी इसमें पूर्व मौर्यकाल की सामाजिक दशा का चित्रण मिलता है। 
  • अर्थशास्त्र का लेखक कोटिल्य है, जिसे चाणक्य तथा विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है। अर्थशास्त्र में मौर्यकालीन राजव्यवस्था स्पस्ट चित्रण मिलता है यह राजकीय व्यवस्था पर लिखी गई पहली पुस्तक है। 
  • शुंगकाल में पतंजलि में पाणिनी की अष्टाध्याई पर महाभाष्य लिखा, जिससे मौर्योत्तर कालीन जानकारी मिलती है। पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे। 
  • संस्कृत भाषा में ऐतिहासिक घटनाओं का क्रमबद्ध लेखन कल हमने किया कल्हण की राजतरंगिणी में कश्मीर के इतिहास का वर्णन है। 


विदेशियों के वृतांत
 विदेशियों के वृतांतों को तीन वर्गों में रखा जा सकता है- यूनान रोम के लेखक, चीन के लेखक तथा, अरब  के लेखक।

यूनान- रोम के लेखक
  • हेरोडोटस तथा तिसियस  सबसे पुराने यूनानी इतिहासकार थे। इनकी रचनाओं में कल्पित कहानियों को स्थान दिया गया है।
  • हेरोडोटस को इतिहास का पिता कहा जाता है। इसने  5वी  शताब्दी ईसवी पूर्व में हिस्टोरिका  नामक पुस्तक की रचना की, जिसमें भारत और फारस  के संबंधों का वर्णन किया गया है।
  • निरयकस,आनासिक्रेट्स,अरिस्टबुलस, सिकंदर के साथ भारत आए थे।
  • मेगस्थनीज चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में यूनानी शासक सेल्यूकस का राजदूत  था। उसने इंडिका के रचना की।  इसमें मौर्यकालीन समाज तथा प्रशासनिक व्यवस्था का विवरण मिलता है।
  • पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी एक अज्ञात यूनानी   लेखक की रचना है, जो मिश्र आकर बस गया  था। उसने 80 ईसवी में भारतीय समुद्री तट की यात्रा की थी। उस के विवरण में बंदरगाहों का उल्लेख के साथ-साथ आयात निर्यात की वस्तुओं का वर्णन मिलता है।  टॉलेमी ने जियोग्राफी (१४०)की रचना की, जिसमें भारत के भौगोलिक परिदृश्य का विवरण मिलता है।
  • प्लिनी ने  नेचुरल हिस्ट्री की रचना की,इसमें  भारत के विविध पक्षों का उपयोगी विवरण है। इसकी रचना पहली सदी में हुई थी।
  • स्ट्रेबो एक प्रसिद्ध यूनानी रचनाकार था जिसने मेगस्थनीज के विवरण को काल्पनिक माना  है।


चीन के लेखक

  • फाह्यान  पांचवी शताब्दी में चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में भारत आया था। उसने भारत में बौद्ध धर्म की स्थति  का विवरण दिया है। साथ ही उसकी रचना में तत्कालीन समाज एवं संस्कृति का विवरण मिलता है।  फाह्यान ने 'फ़ो-क्यो-की' की रचना की थी।
  • हेनसांग हर्षवर्धन  के समय 629 ईस्वी के लगभग भारत आया था तथा 16 वर्षों तक भारत में रहा उसके यात्रा वृतांत में तत्कालीन राजनीतिक के साथ-साथ भारतीय रीति रिवाज तथा शिक्षा पद्धति का वर्णन मिलता है। उसका भ्रमण  वृतांत सी -यू- की  नाम से प्रसिद्ध है।
  • इत्सिंग सातवीं शताब्दी में भारत आया था। उसने विक्रमशिला तथा नालंदा  विश्वविद्यालयनालंदा विश्वविद्यालय में रहकर बौद्ध धर्म का अध्ययन किया। इत्सिंग  ने बौद्ध शिक्षा संस्थओं  तथा भारतीय समाज के विषय में विस्तार से लिखा है।


अरब  के लेखक

  • सुलेमान नौवीं शताब्दी  में भारत आया था। उसने पाल तथा प्रतिहार शासकों के बारे में लिखा है।
  • अल मसूदी 914 ईस्वी से 943ईस्वी तक  भारत में रहा। उसने राष्ट्रकूट शासकों के साम्राज्यवादी विस्तार का विवरण दिया है।
  • अलबरूनी का वास्तविक नाम अबू रिहान था। उसने तहकीक- ए -हिंद की रचना की। वह महमूद गजनबी  का समकालीन था। अलबरूनी ने  संस्कृत भाषा का अध्ययन किया तथा भारतीय समाज का विस्तृत विवरण अपनी रचना में दिया है। 

पुरातात्विक साक्ष्य
प्राचीन भारत के अध्ययन के लिए पुरातात्विक साक्ष्यों का विशेष महत्व है। यह कालक्रम  का सही ज्ञान प्राप्त प्रदान करने वाले साक्ष्य है। पुरातात्विक साक्ष्यों में अभिलेख,सिक्के ,स्मारक/भवन, मूर्तियां तथा चित्रकला प्रमुख है।
अभिलेख या शिलालेख
  •  अभिलेखों का अध्ययन  पुरालेख शास्त्र कहलाता है।
  • बोगजकोई अभिलेख 1400 ईस्वी पूर्व का है, जिससे आर्यों के ईरान से पूर्व की और अने का साक्ष्य मिलता है। इस अभिलेख में वैदिक देवताओं मित्र, वरुण, इंद्र, तथा नासत्य का उल्लेख मिलता है।
  • महस्थान तथा सहगौरा के अभिलेख चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल के हैं। साहगौरा अभिलेख में सूखे से पीड़ित प्रजा को राहत  देने की बात कही गई है।
  • मस्की तथा गुर्जरा  में स्थापित अभिलेखों में अशोक के नाम का स्पष्ट उल्लेख है। नेतुर तथा उड्डेगोलम  के  में भी अशोक के नाम का उल्लेख है।
  • 1803 में जेम्स प्रिंसेप अपने बाह्मी लिपि  में उत्कीर्ण  अशोक के अभिलेखों को पढ़ने में सफलता पाई।  अशोक के प्रयाग अभिलेख पर ही समुद्रगुप्त की प्रशस्ति भी उत्कीर्ण  है। समुद्रगुप्त की यह प्रशस्ति उसके राजकवि हरिषेण ने उत्कीर्ण की।
  • सिक्कों के अध्ययन को मुद्राशास्त्र कहा जाता है। प्राचीनतम  सिक्के सोना, चांदी, तांबा, कासॉ,  सीसा और पोटीन  के मिलते हैं।
  • पकाईमिट्टी के बने सिक्कों के सांचे ईसा की आरंभिक तीन सदियों के हैं। इनमें से अधिकांश कुषाण काल के हैं।
  •  प्राचीन भारतीय सिक्कों पर अनेक चिन्ह उत्कीर्ण , थे इन्हें पंचमार्कड कहा गया। आहात सिक्कों को ऐतिहासिक ग्रंथों में कार्षापण  कहा गया था। ये  इ पू पांचवी सदी के हैं।
  • सर्वप्रथम हिंदी यूनानियों ने  स्वर्ण मुद्राएं जारी की।  इन्होंने सिक्कों पर लेख लिखने का कार्य आरंभ किया।  सर्वाधिक स्वर्ण मुद्राएं कुषाणों ने तथा सबसे अधिक स्वर्ण मुद्राएं गुप्तों  ने जारी की सातवाहनों ने शीशे की मुद्रा जारी की थी।
  • समुद्रगुप्त के एक सिक्के में उसे वीणा बजाते हुए दर्शाया गया है।
  • कुछ गुप्त कालीन सिक्कों पर 'अश्वमेध पराक्रम' शब्द उत्पन्न है।
  • चंद्रगुप्त द्वितीय ने शको  पर जीत के उपलक्ष्य में चांदी के सिक्के चलाए। चांदी के सिक्के प्राय पश्चिमी भारत में प्रचलित थे।
 स्मारक भवन
  •  स्तूप की पहली चर्चा ऋग्वेद में मिलती है। बौद्ध विहार तथा स्तूपों का निर्माण 4-5 वीं शताब्दी से पूर्व के बाद ही हुआ था। मंदिर निर्माण की नागर, वेसर तथा द्रविड़ शैली प्रचलित थी।  मंदिरों का निर्माण गुप्त काल के बाद ही हुआ था।
  • पटना केकुर्माहर से  चंद्रगुप्त मौर्य के राज प्रसाद के अवशेष प्राप्त हुए हैं। कंबोडिया के अंगकोरवाट मंदिर तथा जावा के बोरोबुदुर मंदिर से भारतीय संस्कृति के दक्षिण एशिया में प्रसार  का पता चलता है। बोरोबुदुर मंदिर का निर्माण सम्भवतः  नौवीं  शताब्दी में हुआ था।
मूर्तियां तथा चित्रकला
  • कुषाण काल में बौद्ध धर्म से संबंधित मूर्तियों का निर्माण होने लगा,जिन पर विदेशी प्रभाव देखा जा सकता है। भरहुत, बोधगया, सांची तथा अमरावती से प्राचीन बौद्ध प्रतिमा प्राप्त हुई है। गुप्तकाल में मूर्ति निर्माण की  गांधार तथा मथुरा निर्माण कला प्रजलित थी। गांधार कला पर यूनानी प्रभाव अधिक व्याप्त था।
  • अजंता की गुफाओं के चित्र प्रथम शताब्दी ईस्वी पूर्व से लेकर सातवीं शताब्दी तक  है।
  •   मृदभांड तथा मुहरो  से भी प्राचीन भारतीय इतिहास का कालक्रम का  पता चलता है। चित्रित धूसर मृदभांड वैदिक काल के संबंधित है, जबकि काली तथा लाल मृदभांड का संबंध मौर्य काल से है।


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